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Read this article in Hindi to learn about the development of geography in ancient classical period.

चिरसम्मत काल भूगोल की विचारधारा के विकास का प्राचीन काल माना जाता है । इस काल में ईसा पूर्व लगभग छठी शताब्दी (600 B.C.) से लेकर ईसा पश्चात् तीसरी शताब्दी (300 A.D.) तक का समय गिना जाता है । इस दौरान यूनानी तथा रोमन साम्राज्य से सम्बन्धित भूगोलवेत्ताओं ने उल्लेखनीय योगदान दिया, जिनके विचार विश्व के अन्य क्षेत्रों के विद्वानों के लिए आधार बने ।

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इन दोनों साम्राज्य के समय के भूगोलवेत्ताओं ने भौगोलिक ग्रंथ लिखे, मानचित्रों का निर्माण किया और भूगोल के ज्ञान का विकास किया । यद्यपि इनसे पूर्व भौगोलिक ज्ञान का विकास मिस्र, मेसोपोटामिया एवं पूर्वी भूमध्य सागर के तट व द्वीप समूहों में हुआ था, लेकिन यूनानवासियों ने भूगोल के ज्ञान में व्यवस्थित विचारधारा प्रस्तुत की ।

विकास प्रणाली:

भूगोल के विकास का इतिहास अन्य विषयों की अपेक्षा काफी लम्बा है । प्रारम्भिक भौगोलिक ज्ञान पर्यवेक्षण तथा परिकल्पनाओं  पर आधारित था, लेकिन प्राचीन विद्वानों ने भूगोल का विकास करने के लिए तीन सम्बन्धित प्रणालियों या क्रियाओं का प्रयोग किया था ।

जिनको इस प्रकार रखा जा सकता है:

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(1) अन्वेषण (Exploration),

(2) मानचित्रण (Charting and Mapping),

(3) परिकल्पना (Speculation) करने में यूनानी विद्वान भारतीय विद्वानों के समकक्ष ही थे ।

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भौगोलिक ज्ञान के विकास के कारण:

यूनान में भूगोल के विकास से पूर्व भूगोल को किसी देश या स्थान की धरातलीय दशा, पर्वत, नदी और स्थानों का ज्ञान कराने वाला विषय माना जाता था ।

यूनान में भूगोल को विकसित करने में निम्न बातों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है:

i. नदी घाटी सभ्यताओं का प्रभाव:

भौगोलिक ज्ञान और सभ्यता एक दूसरे के पूरक थे । मेसोपोटामिया की सभ्यता, दजला-फरात की निचली घाटी (सुमेरिया) ने गणित विशेषज्ञों की उपस्थिति में अनेक गणितयी नियमों को जन्म दिया । नदी घाटियों की विकसित जीवन शैली ने मानव ज्ञान में वृद्धि को बढ़ावा दिया ।

ii. आकाश का अधिकांश समय स्वच्छ रहना:

खगोल विज्ञान का विकास चाल्डिया, सीरिया व बेबीलोन में हुआ था, इसका कारण इन भू-मार्गों में आकाश का अधिकांश समय स्वच्छ रहना था । स्वच्छ आकाश में तारों की तीव्र चमकन ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा ।

iii. नील घाटी की उपजाऊ भूमि पर:

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ज्यामितीय ज्ञान का विकास होना । इन लोगों ने वर्ष में 360 दिन तथा एक वर्ष को 12 माह, प्रत्येक माह को 30 दिन में विभाजित किया ।

iv. यूनान की अनुकूल भौगोलिक स्थिति:

धरातल की विविधता, कटी-फटी तट रेखा, द्वीपीय स्थिति, अनुकूल जलवायु ने भूगोल के विकास में योगदान दिया । यूनानवासियों द्वारा समुद्री मार्गों का व्यापार के लिए प्रयोग किया जाना, उनके भौगोलिक ज्ञान के विकास में सहायक सिद्ध हुआ ।

v. यूनानी सभ्यता व साम्राज्य का विस्तार:

यूनानी साम्राज्य का प्रभाव भूमध्य सागर के तटवर्ती भागों, टर्की (एशिया माइनर) तथा निकटवर्ती द्वीपों तक फैल गया था । इससे पहले इन क्षेत्रों पर यहुदी व मिस्री लोगों का प्रभाव था ।

vi. फोनेशियन लोगों का योगदान:

फोनेशियन लोगों को उत्तरी हिन्द महासागर का निवासी माना जाता है। इनके आधीन एशिया माईनर (तटीय टर्की, लेबनान, सीरिया, इजराइल) था । टायरे (Tyre) और सिडोन (Cydone) इनके प्रमुख नगर व बंदरगाह थे । इन्होंने गौडिएरा, कार्थेज, यूटिका नगरों की स्थापना लीबिया के तट पर अपनी कालोनी के रूप में की थी ।

वास्तव में नगरों के लिए अनुकूल स्थिति को पहचानने में वह दक्ष थे । उन्होंने नाविक कला का विकास किया । वह तारों व अनुभवों की सहायता से मार्गों की पहचान कर लेते थे और जलयान चलाते थे, इन्होंने ध्रुव तारा का नाम फोनेशियन तारा रखा था । यूनानियों की अपेक्षा यह समुद्री यात्रा में अधिक दक्ष थे । इन्होंने, वर्णमाला का विकास किया, तथा बोली के आधार पर भाषा (Phonetics) विकसित की ।

यूनानी सभ्यता का प्रादुर्भाव:

यूनानी सभ्यता पर उपर्युक्त बातों का गहरा प्रभाव पड़ा, उन्होंने इन विकसित विचारों का संकलन किया उनको क्रमबद्ध किया तथा तर्कसंगत बनाया ।

उनके भौगोलिक विचारों को विकसित करने में निम्न परिस्थितियां उत्तरदायी रहीं:

i. अनुकल भौगोलिक दशायें:

मध्य अक्षांशीय स्थिति, सम जलवायु, समुद्र तटीय स्थिति, कटा-फटा तट, द्वीप, खाड़ियां, प्रायद्वीपीय संरचना आदि ने यूनानी लोगों को सम्बल व साहस प्रदान किया ।

ii. अनेक विद्याओं का ज्ञान:

इन्हें खगोल शास्त्र, ज्यामिती, इतिहास और गणित का ज्ञान था । इनकी संस्कृति फैलेनिक (Hellenic Culture) कहलाती है ।

iii. पश्चिमी यूरोपीय देशों का कम विकसित होना:

पश्चिमी यूरोपीय देशों के निवासियों का आदिम कालीन सभ्यता में होने के कारण, यूरोपीय विद्वान यूनानियों को दर्शन विज्ञान और भूगोल का जन्मदाता मानने लगे थे यद्यपि इससे पूर्व भारत में इन सब विद्याओं का विकास पहले ही हो चुका था ।

iv. व्यक्तित्व के धनी:

यह लोग परिश्रमी आकर्षक दार्शनिक बुद्धिमान व वैज्ञानिक विचारधारा वाले थे ।

v. विद्धता का सम्मान:

शासकों द्वारा विद्वानों को पूरा सम्मान दिया जाता था तथा उनका विचारो की अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता थी ।